Monday, 23 August 2021

Nazm(Kavita)_Bharam_Poet_Shabnam Firdaus

بھرم
چھپا کے زخم سینے میں
تھپک کے درد آنکھوں میں
بظاہرتو بہت مضبوط بنتی ہوں
کسی کے بھی سوالوں کو 
میں ہنس کے ٹال دیتی ہوں
حقیقت ہے مگر یہ بھی
قفس میں ذہن کے میرے
عجب اک خوف کنڈلی مار کے بیٹھا
مجھے ہر وقت ہے ڈستا
کہ چاندی پر رنگ سونا
چڑھا رکھا ہے جو میں نے
بھرم کھل جائے نہ میرا
ہوئیں گر بے وفا آنکھیں
بہے گا درد آنکھوں سے
سنبھل پاؤں گی پھر کیسے
اٹھانی ہوگی تب خفت 
سبھی کے سامنے مجھکو
 شبنم فردوس

भ्रम

छुपा के ज़ख्म सीने में
थपक के दर्द आंखों में
बजा़हिर तो बहुत मज़बूत बनती हूं
किसी के भी सवालों को 
मैं हंसकर टाल देती हूं
हक़ीक़त है मगर यह भी
क़फ़स में ज़हन के मेरे
 अजब एक खौ़फ़ कुंडली मार के 
 बैठा
मुझे हर वक्त है डस्ता 
कि चांदी पर रंग_ए_सोना
चढ़ा रखा है जो मैं ने 
भ्रम खुल जाए ना मेरा
हुईं गर बेवफ़ा आंखे
बहेगा दर्द आंखों से
संभल पाऊंगी फिर कैस
उठानी होगी तब खिफ़्फ़त
सभी के सामने मुझक
शबनम फ़िरदौस

Labels: , , , ,

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home