Tuesday, 7 September 2021

Nazm(Kavita)_Bawli_Poet_Shabnam Firdaus

سنو!!!
باؤلی تم 
حقیقت سے کب تک
چراؤ گی نظریں
اندھیرے میں کب تک
یوں بیٹھی رہوگی
بھلا کب تلک خواب کی لاشیں پلکوں پہ ڈھوتی رہوگی ؟
ندی آنکھ کی ہو چکی خشک بالکل   
اذیت انہیں اور کیوں دے رہی ہو ؟ 
  کبھی وقت ٹھہرا کسی کی بھی خاطر ؟
تو کس معجزے کی ہو اب منتظر تم ؟
اٹھو باؤلی 
 اپنے خوابوں کو نوچو
زمیں کھود 
دفنا دو انکو 
اجالے سے آنکھوں کو 
خیرہ کرو تم 
نئے خواب اتریں گے 
ڈاروں کی صورت 
کہ اب زندگی 
مسکرائے گی ہر سو
تو نغمے لبوں پر چہکنے لگیں گے
شبنم فردوس

सुनो!!!
बावली तुम
हक़ीक़त से कब तक 
चुराओगी नज़रें
अंधेरे में कब तक
 यूं बैठी रहेगी?
भला कब तलक ख़्वाब की लाशें
पलकों पे ढोती रहोगी?
नदी आंख की हो चुकी खु़श्क बिलकुल
अजी़यत इन्हे और क्यो दे रही हो?
कभी वक़्त ठहरा किसी की भी खा़तिर?
तो किस मोजजे़ की हो अब मुंतजि़र तुम
उठो बावली।।
अपने ख़्वाबों को नोचो
ज़मीं खोद
दफ़ना दो इनको
उजाले से आंखों को
खी़रा करो तुम
नए ख़्वाब उतरेंगे
डारों की सूरत
कि अब ज़िंदगी
मुस्कुराए गी हर सू
तो नग़में लबों पर चहकने लगें गे
शबनम फ़िरदौस

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