Wednesday, 13 April 2022

Nazm(Kavita)__Aas Ka Diya ,Poet_Shabnam Firdaus

آس کا دیا

اگر فرصت ملے تم کو

گھماؤ وقت کا پہیہ ذرا پیچھے

نظر آئیں گی وہ آنکھیں 

جو چاندی سی چمکتی تھیں

جوگہری جھیل جیسی تھیں

وہ جن میں چاند بھی اکثر اترتا تھا

وہ آنکھیں ! ہاں وہی آنکھیں !

تمہارے خواب ساری رات بنتی تھیں

تمہیں پہنا کے  خوابوں کو 

روانہ پڑھنے کرتی تھیں 

تمہاری واپسی تک منتظر دہلیز پر رہتیں 

وہ آنکھیں اب تلک دہلیز ہی  پر  بیٹھی ہوئی  ہیں 

  اترتا ہی نہیں ہے چاند اب  ان میں 

کہ ہے سوکھی ہوئی وہ  جھیل مدت سے

سنو ! ان میں

مگر  اب بھی دیا اک آس کا توٹمٹماتا ہے

شبنم فردوس

आस का दिया

अगर फ़ुरसत मिले तुम को
घुमाओ वक्त़ का पहिया ज़रा पिछे
नज़र आएंगी वह आंखें
जो चांदी सी चमकती थीं
जो गहरी झील जैसी थीं
वह जिनमें चांद भी अकसर उतरता था
वह आंखें । हां वही आंखें।
तुम्हारे ख़्वाब सारी रात बुनती थीं
तुम्हें  पहना के ख़्वाबों को
रवाना पढ़ने करती थीं
तुम्हारी वापसी तक मुंतज़िर दहलीज़ पर रहतीं
वह आंखें अब तलक दहलीज़ ही पर बैठी हुई हैं
उतरता ही नहीं है चांद अब उनमें
कि है सुखी हुई वह झील मुद्दत से
सुनो। उन में
मगर अब भी दिया एक आस का तो टिमटिमाता है

शबनम फ़िरदौस

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