Thursday, 13 October 2022

Ghazal _Poet _Javed Akhtar जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता

جدھر جاتے ہیں سب جانا ادھر اچھا نہیں لگتا
مجھے پامال رستوں کا سفر اچھا نہیں لگتا

غلط باتوں کو خاموشی سے سننا حامی بھر لینا
بہت ہیں فائدے اس میں مگر اچھا نہیں لگتا

مجھے دشمن سے بھی خودداری کی امید رہتی ہے
کسی کا بھی ہو سر قدموں میں سر اچھا نہیں لگتا

بلندی پر انہیں مٹی کی خوشبو تک نہیں آتی
یہ وہ شاخیں ہیں جن کو اب شجر اچھا نہیں لگتا

یہ کیوں باقی رہے آتش زنو یہ بھی جلا ڈالو
کہ سب بے گھر ہوں اور میرا ہو گھر اچھا نہیں لگتا

جاوید اختر 





जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता

ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता

मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता

बुलंदी पर उन्हें मिट्टी की ख़ुश्बू तक नहीं आती
ये वो शाख़ें हैं जिन को अब शजर अच्छा नहीं लगता

ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नो ये भी जला डालो
कि सब बे-घर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता





जावेद अख्तर

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2 Comments:

At 13 October 2022 at 16:13 , Anonymous Anonymous said...

وااہ وااہ کیا کہنے

 
At 14 October 2022 at 01:25 , Anonymous Shabana Aamir said...

Wahhhhh Wahhhhh

 

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