Saturday, 12 June 2021

Safura Zergar

صفورہ زرگر

گھنا اندھیرا 
تھا چاروں جانب 
دکھائی دیتا نہ رستہ کوئی 
 طلوعِ سورج کے منتظر سب
اسی جگہ پر ٹھہر گئے تھے 
مگر وہ تنہا 
نکل پڑی تھی   
اسے پتہ تھا 
کہ  اپنے حصے کی روشنی کو
تلاش کرنا پڑیگا  خود ہی  
یہاں اجالا کبھی نہ ہوگا 
گھنے درختوں کے درمیاں  کیا 
کرن کبھی بھی پہنچ سکی ہے
کبھی نہ منزل ملے گی ہم کو 
تلاش _ منزل کی جستجو میں 
کسی کو ہمت تو کرنی ہوگی 

قدم وہ اپنا بڑھا رہی تھی 
عجب لگن تھی  غضب کی دھن تھی 
یقیں کو آنچل میں اپنے باندھے 
ہزار مشکل سے لڑ پڑی تھی
فلک نظر میں سما چکا  تھا
سراغ _ منزل وہ  پا چکی تھی 
تبھی اچانک
کسی نے اس کو  دبوچا , کھینچا   
عجب ہی رستے پر لے چلا تھا  
وہ بے خبر تھی 
اندھیرا آنکھوں کو ڈس رہا  تھا
 ہجومی وحشت کی آہٹوں کو وہ سن رہی تھی
ہزار تہمت کے تیر جاں میں گڑے ہوۓ ہیں 
وہ اب قفس میں ہے قید لیکن
لبوں پہ مسکان یے یقیں کا
 جلاٸ تھی  جو مشال اس نے
بجھی نہیں ہے 
نہیں بجھے گی ۔۔۔!
شبنم فردوس
08/06/20
सफूरा जरगर

घना अंधेरा था 
चारों जानिब
दिखाई देता ना रस्ता कोइ
तलूए  सूरज के मुंतज़िर सब
उसी जगह पर ठहर गए थे
मगर वह तन्हा
 निकल पड़ी थी
उसे पता था 
के अपने हिस्से की रोशनी को
तलाश करना पड़ेगा खुद ही
यहां उजाला कभी ना होगा
घने दरख़्तों के दरमियां क्या
किरण कभी भी पहुंच सकी है
कभी न मंजिल मिलेगी हमको
तलाशें मंजिल की जुस्तजू में 
किसी को हिम्मत तो करनी होगी
कदम वह अपना बढ़ा रही थी
अजब लगन थी गज़ब की धुन थी
यकीं को आंचल में अपने बांधे
हज़ार मुश्किल से लड़ पड़ी थी
फलक नज़र में समा चुका था
सुरागे मंजिल वह पा चुकी थी
तभी अचानक
 किसी ने उसको दबोचा,
 खींचा
अजब ही रास्ते पर ले चला था
वह  बेखबर थी
 अंधेरा आंखों को डस रहा था
हुजूमी वहशत की आहटौ  को
वह सुन रही थी
हज़ार तोहमत के तीर जां में गड़े हुए है
वह अब क़फ़स में है क़ैद लेकिन
लबों पे मुस्कान है यकीं का
जलाई थी जो मशाल उसने
बुझी नहीं है 
नहीं बुझेगी

शबनम फिरदौस
08/06/ 20Published from Blogger Prime Android App

Labels: , , , , , ,

2 Comments:

At 16 June 2021 at 13:57 , Blogger Unknown said...

Wow great lines ....Shabnam

 
At 16 June 2021 at 22:48 , Blogger Shabnam firdaus said...

بہت بہت شکریہ
سلامت رہیں

 

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home