Ghazal (गजल )- Poet _Aanis Moin इक कर्ब-ए-मुसलसल की सज़ा दें

اک کرب مسلسل کی سزا دیں تو کسے دیں مقتل میں ہیں جینے کی دعا دیں تو کسے دیں پتھر ہیں سبھی لوگ کریں بات تو کس سے اس شہر خموشاں میں صدا دیں تو کسے دیں ہے کون کہ جو خود کو ہی جلتا ہوا دیکھے سب ہاتھ ہیں کاغذ کے دیا دیں تو کسے دیں سب لوگ سوالی ہیں سبھی جسم برہنہ اور پاس ہے بس ایک ردا دیں تو کسے دیں جب ہاتھ ہی کٹ جائیں تو تھامے گا بھلا کون یہ سوچ رہے ہیں کہ عصا دیں تو کسے دیں آنس معین इक कर्ब-ए-मुसलसल की सज़ा दें तो किसे दें मक़्तल में हैं जीने की दुआ दें तो किसे दें पत्थर हैं सभी लोग करें बात तो किस से इस शहर-ए-ख़मोशाँ में सदा दें तो किसे दें है कौन कि जो ख़ुद को ही जलता हुआ देखे सब हाथ हैं काग़ज़ के दिया दें तो किसे दें सब लोग सवाली हैं सभी जिस्म बरहना और पास है बस एक रिदा दें तो किसे दें जब हाथ ही कट जाएँ तो थामेगा भला कौन ये सोच रहे हैं कि असा दें तो किसे दें बाज़ार में ख़ुशबू के ख़रीदार कहाँ हैं ये फूल हैं बे-रंग बता दें तो किसे दें आनिस मुईन