Ghazal _ zindagani javedani bhi nahi by Amjad Islam Amjad

زندگانی جاودانی بھی نہیں لیکن اس کا کوئی ثانی بھی نہیں ہے سوا نیزے پہ سورج کا علم تیرے غم کی سائبانی بھی نہیں منزلیں ہی منزلیں ہیں ہر طرف راستے کی اک نشانی بھی نہیں آئنے کی آنکھ میں اب کے برس کوئی عکس مہربانی بھی نہیں آنکھ بھی اپنی سراب آلود ہے اور اس دریا میں پانی بھی نہیں جز تحیر گرد باد زیست میں کوئی منظر غیر فانی بھی نہیں درد کو دل کش بنائیں کس طرح داستان غم کہانی بھی نہیں یوں لٹا ہے گلشن وہم و گماں کوئی خار بد گمانی بھی نہیں امجد اسلام امجد  ज़िंदगानी जावेदानी भी नहीं लेकिन इस का कोई सानी भी नहीं है सवा-नेज़े पे सूरज का अलम तेरे ग़म की साएबानी भी नहीं मंज़िलें ही मंज़िलें हैं हर तरफ़ रास्ते की इक निशानी भी नहीं आइने की आँख में अब के बरस कोई अक्स-ए-मेहरबानी भी नहीं आँख भी अपनी सराब-आलूद है और इस दरिया में पानी भी नहीं जुज़ तहय्युर गर्द-बाद-ए-ज़ीस्त में कोई मंज़र ग़ैर-फ़ानी भी नहीं अमजद इस्लाम अमजद  दर्द को दिलकश बनाएँ किस तरह दास्तान-ए-ग़म कहानी भी नहीं यूँ लुटा है गुलशन-ए-वहम-ओ-गुमाँ कोई ख़ार-ए-बद-गुमानी भी नहीं अमजद इस्लाम अमजद

Nazm_Maan Ager Tum Na Hoti_Poet _Shabnam Firdaus

ماں اگر تم نہ ہوتی 

ماں 
اگر تم نہ ہوتی 
جیون سارتھک نہ ہوتا 
جیون کی 
اس گاتھا میں
ایک قدم آگے نہ بڑھتی 
دکھ نے جب جب 
گھیرا مجھکو
سینے سے لپٹا کر تم 
مجھکو ہمت دیتی تھی 
چپکے ، چپکے روتی تھی 

تم نے ہی تو 
سیکھایا تھا 
دکھ کو پشت پہ لادے کیسے 
آگے بڑھتے رہنا ہے 
ٹیڑھے ،میڑھے رستے پر 
بے خوف و خطر 
 کیسے چلنا ہے  
تم ہی تو یہ کہتی تھی 
جیون کے اس رستے میں 
ایسی بھی کچھ 
جا ملے گی 
دور تلک پانی نہ ہوگا 
پیاس سے لب یہ سوکھیں گے
لیکن تم گھبرانا مت 
ایڑی کے
گھس گھس جانے سے 
ہمت ہار نہ جانا تم 
ایڑی کے گھسنے سے یی 
منزل تم پاؤ گی، گڑیا
ماں اگر تم 
نہ ہوتی تو 
جیون کی نیا کو
 کھیتے 
بیچ بھنور میں 
ذوب ہی جاتی 
تم نے ہی تو سکھلایا تھا 
ناؤ کو کھینے ،
مجدھاروں سے 
بچ کے نکلنے کا فن مجھ کو
ماں اگر تم نہ ہوتی تو 
جیون کے اس 
رنگ منچ پہ  
ہرگز ٹک نہ پاتی میں 
تم سے ہی تو 
گیان ملا ہے 
بھومیکا خوب نبھانے کا
اب تم ہی بتاؤ مجھکو
بن تمہارے کیسے میرا
جیون سارتھک ہوتا، ماں
شبنم فردوس

मां अगर तुम ना होती

मां

अगर तुम न होती

जीवन सार्थक न होता

जीवन की

इस गाथा में

एक क़दम आगे न बढ़ती

दुख ने जब जब

घेरा मुझको

सीने से लिपटा कर तुम

मुझ को हिम्मत देती थी,

चुपके ,चुपके रोती थी

तुमने ही तो

सिखाया था दुख को *पुष्त* पे लादे कैसे

आगे बढ़ते रहना है

टेढ़े मेढ़े रस्ते पर

बेखो़फ़ -ओ-ख़तर

कैसे चलना है

तुम ही तो यह कहती थी

जीवन के इस रस्ते में

ऐसी भी कुछ

जा मिलेगी

दूर तलक पानी न होगा

प्यास से लब यह सूखे गे

लेकिन तुम घबराना मत

एड़ी के

घिस-घिस जाने से

हिम्मत हार न जाना तुम

ऐड़ी के घिसने से ही

मंजिल तुम पाओगी, गुड़िया

मां अगर तुम

न होती तो

जीवन की नैया को खेते

बीच भंवर में

डूब ही जाती

तुमने ही तो सिखलाया था

नाव को खेने,

मझधारों से

बच के निकलने का फ़न मुझको

मां अगर तुम न होती तो

जीवन के

इस रंगमंच पे

हरगिज टिक न पाती मैं

तुमसे ही तो ज्ञान मिला है

भूमिका खूब निभाने का

अब तुम ही बताओ

बिन तुम्हारे कैसे मेरा

जीवन सार्थक होता, मां

शबनम फ़िरदौस
ss

Comments

Shahreyar Ahmad said…
واااہ بہت خوب
Kaushal Kishore said…
इस कविता ने मेरे दिल को छू लिया।
Shabnam firdaus said…
बहुत बहुत धन्यवाद