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Showing posts from January, 2022

Ghazal _ zindagani javedani bhi nahi by Amjad Islam Amjad

زندگانی جاودانی بھی نہیں لیکن اس کا کوئی ثانی بھی نہیں ہے سوا نیزے پہ سورج کا علم تیرے غم کی سائبانی بھی نہیں منزلیں ہی منزلیں ہیں ہر طرف راستے کی اک نشانی بھی نہیں آئنے کی آنکھ میں اب کے برس کوئی عکس مہربانی بھی نہیں آنکھ بھی اپنی سراب آلود ہے اور اس دریا میں پانی بھی نہیں جز تحیر گرد باد زیست میں کوئی منظر غیر فانی بھی نہیں درد کو دل کش بنائیں کس طرح داستان غم کہانی بھی نہیں یوں لٹا ہے گلشن وہم و گماں کوئی خار بد گمانی بھی نہیں امجد اسلام امجد  ज़िंदगानी जावेदानी भी नहीं लेकिन इस का कोई सानी भी नहीं है सवा-नेज़े पे सूरज का अलम तेरे ग़म की साएबानी भी नहीं मंज़िलें ही मंज़िलें हैं हर तरफ़ रास्ते की इक निशानी भी नहीं आइने की आँख में अब के बरस कोई अक्स-ए-मेहरबानी भी नहीं आँख भी अपनी सराब-आलूद है और इस दरिया में पानी भी नहीं जुज़ तहय्युर गर्द-बाद-ए-ज़ीस्त में कोई मंज़र ग़ैर-फ़ानी भी नहीं अमजद इस्लाम अमजद  दर्द को दिलकश बनाएँ किस तरह दास्तान-ए-ग़म कहानी भी नहीं यूँ लुटा है गुलशन-ए-वहम-ओ-गुमाँ कोई ख़ार-ए-बद-गुमानी भी नहीं अमजद इस्लाम अमजद

Sher__Poet__Shabnam Firdaus

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نہ جانے اس نے کیا کہا تھا کان میں  کہ اب تلک ہے خوشبو میرے چار سو شبنم فردوس न जाने उस ने ‌क्या कहा था कान में कि अब तलक है खु़श्बू मेरे चार सु शबनम फ़िरदौस

Nazm___Lahar_Poet_Shabnam Firdaus

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لہر یہ کل ہی کی تو بات تھی  اسی جگہہ اسی گھڑی پون کے مست جھونکے سی  فضا میں عطر گھولتی  وہ ہنستی کھلکھلاتی لڑکی آنکھ جسکی کانچ سی  کہ جیسے ریڈیم ہو کوئی  پانیوں پہ چلتے ہوئے لڑکھڑا کے گر پڑی مگر پلک جھپکتے ہی وہ اٹھ کے یوں کھڑی ہوئی  کہ جیسے کہہ رہی ہو وہ  نہیں ہے دم کسی میں بھی اسے کوئی گرا سکے  کہ اس طرح ہرا سکے  تو آج کیا ہوا اسے  گری تو پھر  اٹھی نہیں سنبھالا خود کو کیوں نہیں  یوں لہر سنگ مچل پڑی ؟ فردوس लहर ये‌ कल ही की तो‌ बात थी इसी जगह इसी घड़ी पवन के मस्त झोंके सी फिज़ा में इत्र घोलती वह हंसती खिलखिलाती लड़की आंखें जिसकी कांच सी कि जैसे रेडियम हो कोई पानियों पे चलते हुए लड़खड़ा के गिर पड़ी मगर पलक झपकते ही वह उठ के यूं खड़ी हुई कि जैसे कह‌ रही हो वह नहीं है दम किसी में भी उसे कोई गिरा सके कि इस तरह हरा सके तो आज क्या हुआ उसे गिरी तो फिर  उठी नहीं संभाला खु़द को क्यों नहीं यू लहर स़ग क्यों चल पड़ी? शबनम‌ फि़रदौस