Nazm(kavita)__Khota Sikka, poet_Shabnam Firdaus

کھوٹا سکہ جب سکہ اپنا کھوٹا ہو تو دوش کسی کو کیا دینا معصوم بنا وہ پھرتا تھا ہر بات میں دھوکہ دیتا تھا ہر بار کہانی گڑھتا تھا وہ سب کو جھوٹا کہتا تھا چہرے پہ کتنے چہرے تھے مجھکو یہ معلوم نہ تھا کیوں آج تمہیں ہے دکھ آخر جو بویا تھا وہ کاٹو گے غلطی تو تمہاری اپنی تھی الٹی عینک سے دیکھا تھا شبنم فردوس खोटा सिक्का जब सिक्का अपना खोटा हो तो दोष किसी को क्या देना मासूम बना वह फिरता था हर बात में धोका देता था हर बार कहानी गढ़ता था वह सब को झूठा कहता था चेहरे पे कितने चेहरे थे मुझ को यह मालूम न था क्यों आज तुम्हें है दुख आखि़र जो बोया था वह काटो गे ग़लती तो तुम्हारी अपनी थी उल्टी ऐनक से देखा था शबनम फ़िरदौस