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Showing posts from November, 2020

Ghazal _ zindagani javedani bhi nahi by Amjad Islam Amjad

زندگانی جاودانی بھی نہیں لیکن اس کا کوئی ثانی بھی نہیں ہے سوا نیزے پہ سورج کا علم تیرے غم کی سائبانی بھی نہیں منزلیں ہی منزلیں ہیں ہر طرف راستے کی اک نشانی بھی نہیں آئنے کی آنکھ میں اب کے برس کوئی عکس مہربانی بھی نہیں آنکھ بھی اپنی سراب آلود ہے اور اس دریا میں پانی بھی نہیں جز تحیر گرد باد زیست میں کوئی منظر غیر فانی بھی نہیں درد کو دل کش بنائیں کس طرح داستان غم کہانی بھی نہیں یوں لٹا ہے گلشن وہم و گماں کوئی خار بد گمانی بھی نہیں امجد اسلام امجد  ज़िंदगानी जावेदानी भी नहीं लेकिन इस का कोई सानी भी नहीं है सवा-नेज़े पे सूरज का अलम तेरे ग़म की साएबानी भी नहीं मंज़िलें ही मंज़िलें हैं हर तरफ़ रास्ते की इक निशानी भी नहीं आइने की आँख में अब के बरस कोई अक्स-ए-मेहरबानी भी नहीं आँख भी अपनी सराब-आलूद है और इस दरिया में पानी भी नहीं जुज़ तहय्युर गर्द-बाद-ए-ज़ीस्त में कोई मंज़र ग़ैर-फ़ानी भी नहीं अमजद इस्लाम अमजद  दर्द को दिलकश बनाएँ किस तरह दास्तान-ए-ग़म कहानी भी नहीं यूँ लुटा है गुलशन-ए-वहम-ओ-गुमाँ कोई ख़ार-ए-बद-गुमानी भी नहीं अमजद इस्लाम अमजद

वो एक लड़की

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وہ ایک لڑکی  ساحل پر بیٹھی ہوئی ایک  لڑکی دھنک رنگ سمیٹے ہوئے آنکھوں میں انگلی کے اشارے سے قرطاسِ  ابر پر  آڑی ترچھی لکیریں کھینچتی ہے  کبھی بدبداتی  ہے  کبھی گنگناتی ہے  کبھی مسکراتی ہے   تو لگتا ہے جیسے گرمی کے موسم میں بارش ہوئی ہے  امس سے تن و من کو راحت ملی ہے  کبھی تو وہ بالکل خاموش ہو جاتی ہے   انگلی چلانا   بھول جاتی یوں جیسے زمیں بھول بیٹھی ہو چلنا ہر اک شئے جیسے جامد ہوئی پل میں مگر  دوسرے لمحے    وہ  سر   جھٹک کر    لکیریں مٹاتی ہے اور پھر  بناتی ہے  کئی گھنٹوں سے بس یہی کر رہی ہے کوئی نفسیاتی مریضہ ہے شاید شبنم فردوس वो एक लड़की साहिल पर बैठी हुई एक लड़की धनक रंग समेटे हुए आंखों में  उंगली के इशारे से  किर्तासे अब्र पर  आड़ी तिरछी लकीरें खींचती है कभी बुदबुदाती है  कभी गुनगुनाती है तो लगता है जैसे गर्मी के मौसम में बारिश हुई है उमस से तनो मन को राहत मिली है कभी तो वो बिल्कुल खामोश हो जाती है उंगली चलना भूल जाती है  यूं जैसे ज़मीन भूल बैठी हो चलाना हर एक श्ये जैसे जमिद हुई पल में मगर दूसरे लम्हे वो सर झटक कर लकीरें मिटाती है  और फिर बनाती है कई घंटों से बस यही कर रही है  कोई

गुमशुदा ख्वाब ‎/ ‎گمشدہ خواب

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گمشدہ خواب مدتوں سے ڈھونڈتی ہیں  آنکھیں انکو  گمشدہ جو خواب ہیں سب  ایک دن ناراض ہو کر  ہوگئے غائب کہیں وہ   ہائے میرے خواب سارے کس قدر تھے خوبصورت   پنکھ ان کے تھے سنہری   پاٶں میں گھنگھرو بندھے تھے اور لبوں پر زمزمہ تھا ہاتھ میں سورج اٹھاۓ  کھو گٸے اس شش جہت میں  قریہ قریہ بستی بستی  شہر میں بھی ان کو ڈھونڈا پر ملے مجھکو نہیں وہ  ٹھک گئی ہیں آنکھیں اب تو  روتے روتے خشک ہیں یوں  جیسے کوئی ماں کی آنکھیں  فوت پر بچے کی اپنے  بین کر کے خشک ہو جائیں شبنم فردوس गुमशुदा ख्वाब मुद्दतओ से ढूंढती हैं  आंखें उनको गुमशुदा जो ख्वाब हैं सब  एक दिन नाराज़ होकर  होगए गायब कहीं वो हाय मेरे ख्वाब सारे किस क़दर थे ख़ूबसूरत पंख उनके थे सुनहरी पाओं में घुंघरू बंधे थे  और लबों पर ज़मज़मा था हाथ में सूरज उठाए  खो गए इस शष जिहत में क़र्या क़र्या बस्ती बस्ती  शहर में भी उनको ढूंढ़ा  पर मिले मुझको नहीं वो थक गई है आंखें अब तो  रोते रोते खुश्क हैं यूं  जैसे कोई मां की आंखें  फौत पर बच्चे की अपने बीन कर के खुश्क होजाएं  शबनम फ़िरदौस ज़मज़मा ____ नग्मा शष जिहत ___ दुनिया क़र्या क़र्या __ गांव गांव

Bosidah khwab

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بوسیدہ خواب روشن روشن  دھوپ سنہری  میں نے   خوابوں کی اک گٹھری کھولی   الگنی پر  ٹانگ دیا  ان بوسیدہ  خوابوں کو  دھوپ لگے تو زندہ ہوں    ابر کے  چھوٹے چھوٹے ٹکڑے  جانے کہاں سے آ دھمکے  دھوپ سنہری کو نگلے  رم جھم رم جھم        جم کے برسے   گل کر بہہ گئے خواب سارے شبنم فردوس बोसीदह ख्वाब रौशन रौशन  धूप सुनहरी मैने ख्वाबों की एक गठरी खोली अलगनी पर टांग दिया इन बोसीदह ख्वाबों को धूप लगे तो  ज़िन्दा हों अब्र के  छोटे छोटे टुकड़े जाने कहां से आ धमके धूप सुनहरी को निगले रिम झिम् रिम झिम  जम के बरसे  गल कर बह गए ख्वाब सारे शबनम फ़िरदौस