गुमशुदा ख्वाब ‎/ ‎گمشدہ خواب

گمشدہ خواب

مدتوں سے ڈھونڈتی ہیں 
آنکھیں انکو
 گمشدہ جو خواب ہیں سب 
ایک دن ناراض ہو کر 
ہوگئے غائب کہیں وہ  
ہائے میرے خواب سارے
کس قدر تھے خوبصورت  
پنکھ ان کے تھے سنہری  
پاٶں میں گھنگھرو بندھے تھے
اور لبوں پر زمزمہ تھا
ہاتھ میں سورج اٹھاۓ 
کھو گٸے اس شش جہت میں 
قریہ قریہ بستی بستی 
شہر میں بھی ان کو ڈھونڈا
پر ملے مجھکو نہیں وہ 
ٹھک گئی ہیں آنکھیں اب تو 
روتے روتے خشک ہیں یوں 
جیسے کوئی ماں کی آنکھیں 
فوت پر بچے کی اپنے 
بین کر کے خشک ہو جائیں
شبنم فردوس

गुमशुदा ख्वाब

मुद्दतओ से ढूंढती हैं 
आंखें उनको
गुमशुदा जो ख्वाब हैं सब 
एक दिन नाराज़ होकर 
होगए गायब कहीं वो
हाय मेरे ख्वाब सारे
किस क़दर थे ख़ूबसूरत
पंख उनके थे सुनहरी
पाओं में घुंघरू बंधे थे 
और लबों पर ज़मज़मा था
हाथ में सूरज उठाए 
खो गए इस शष जिहत में
क़र्या क़र्या बस्ती बस्ती 
शहर में भी उनको ढूंढ़ा 
पर मिले मुझको नहीं वो
थक गई है आंखें अब तो 
रोते रोते खुश्क हैं यूं 
जैसे कोई मां की आंखें 
फौत पर बच्चे की अपने
बीन कर के खुश्क होजाएं 

शबनम फ़िरदौस

ज़मज़मा ____ नग्मा
शष जिहत ___ दुनिया
क़र्या क़र्या __ गांव गांव

Comments

Fatima said…
بہت ہی عمدہ واااااااااہ
तानिया मिश्रा said…
वाह क्या बात है
बहूत ही अच्छी कविता
Mirza said…
واااااااااہ وااااااہ کیا کہنے بہت ہی خوب
Azra khan said…
Wahhhh bht hi umdaahh
گوہر نایاب said…
بہت خووووووب