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Showing posts from April, 2022

Ghazal _ zindagani javedani bhi nahi by Amjad Islam Amjad

زندگانی جاودانی بھی نہیں لیکن اس کا کوئی ثانی بھی نہیں ہے سوا نیزے پہ سورج کا علم تیرے غم کی سائبانی بھی نہیں منزلیں ہی منزلیں ہیں ہر طرف راستے کی اک نشانی بھی نہیں آئنے کی آنکھ میں اب کے برس کوئی عکس مہربانی بھی نہیں آنکھ بھی اپنی سراب آلود ہے اور اس دریا میں پانی بھی نہیں جز تحیر گرد باد زیست میں کوئی منظر غیر فانی بھی نہیں درد کو دل کش بنائیں کس طرح داستان غم کہانی بھی نہیں یوں لٹا ہے گلشن وہم و گماں کوئی خار بد گمانی بھی نہیں امجد اسلام امجد  ज़िंदगानी जावेदानी भी नहीं लेकिन इस का कोई सानी भी नहीं है सवा-नेज़े पे सूरज का अलम तेरे ग़म की साएबानी भी नहीं मंज़िलें ही मंज़िलें हैं हर तरफ़ रास्ते की इक निशानी भी नहीं आइने की आँख में अब के बरस कोई अक्स-ए-मेहरबानी भी नहीं आँख भी अपनी सराब-आलूद है और इस दरिया में पानी भी नहीं जुज़ तहय्युर गर्द-बाद-ए-ज़ीस्त में कोई मंज़र ग़ैर-फ़ानी भी नहीं अमजद इस्लाम अमजद  दर्द को दिलकश बनाएँ किस तरह दास्तान-ए-ग़म कहानी भी नहीं यूँ लुटा है गुलशन-ए-वहम-ओ-गुमाँ कोई ख़ार-ए-बद-गुमानी भी नहीं अमजद इस्लाम अमजद

Nazm(kavita)__Khota Sikka, poet_Shabnam Firdaus

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کھوٹا سکہ جب سکہ اپنا کھوٹا ہو  تو دوش  کسی کو کیا دینا معصوم بنا وہ پھرتا تھا ہر بات میں  دھوکہ دیتا تھا ہر بار کہانی  گڑھتا تھا  وہ سب کو جھوٹا کہتا تھا چہرے پہ کتنے چہرے تھے  مجھکو یہ معلوم نہ تھا کیوں آج  تمہیں ہے دکھ آخر جو بویا تھا وہ کاٹو گے غلطی تو تمہاری اپنی تھی   الٹی عینک سے دیکھا تھا شبنم فردوس खोटा सिक्का जब सिक्का अपना  खोटा हो तो दोष  किसी को क्या देना मासूम बना वह फिरता था हर बात में धोका देता था हर बार कहानी गढ़ता था वह सब को झूठा कहता था चेहरे पे कितने चेहरे थे मुझ को यह मालूम न था क्यों आज तुम्हें है दुख आखि़र जो बोया था वह काटो गे ग़लती तो तुम्हारी अपनी थी उल्टी ऐनक से देखा था शबनम फ़िरदौस

Nazm(Kavita)__Aas Ka Diya ,Poet_Shabnam Firdaus

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آس کا دیا اگر فرصت ملے تم کو گھماؤ وقت کا پہیہ ذرا پیچھے نظر آئیں گی وہ آنکھیں  جو چاندی سی چمکتی تھیں جوگہری جھیل جیسی تھیں وہ جن میں چاند بھی اکثر اترتا تھا وہ آنکھیں ! ہاں وہی آنکھیں ! تمہارے خواب ساری رات بنتی تھیں تمہیں پہنا کے  خوابوں کو  روانہ پڑھنے کرتی تھیں  تمہاری واپسی تک منتظر دہلیز پر رہتیں  وہ آنکھیں اب تلک دہلیز ہی  پر  بیٹھی ہوئی  ہیں    اترتا ہی نہیں ہے چاند اب  ان میں  کہ ہے سوکھی ہوئی وہ  جھیل مدت سے سنو ! ان میں مگر  اب بھی دیا اک آس کا توٹمٹماتا ہے شبنم فردوس आस का दिया अगर फ़ुरसत मिले तुम को घुमाओ वक्त़ का पहिया ज़रा पिछे नज़र आएंगी वह आंखें जो चांदी सी चमकती थीं जो गहरी झील जैसी थीं वह जिनमें चांद भी अकसर उतरता था वह आंखें । हां वही आंखें। तुम्हारे ख़्वाब सारी रात बुनती थीं तुम्हें  पहना के ख़्वाबों को रवाना पढ़ने करती थीं तुम्हारी वापसी तक मुंतज़िर दहलीज़ पर रहतीं वह आंखें अब तलक दहलीज़ ही पर बैठी हुई हैं उतरता ही नहीं है चांद अब उनमें कि है सुखी हुई वह झील मुद्दत से सुनो। उन में मगर अब भी दिया एक आस का तो टिमटिमाता है शबनम फ़िरदौस

Nazm (Kavita)___Makdi Jaal ,Poet__Shabnam Firdaus

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مکڑی جال جبیں پر شکن  رخ پہ رنج و الم ماتمی آنکھیں لے کے  یوں بیٹھے ہو کیوں تم ؟  اٹھو !  مکڑی جالے کو توڑو  اندھیرے کو چیرو  مرے پاس آؤ میں اب بھی وہیں ہوں  جہاں تم نے چھوڑا ہمیشہ سے ہوں  منتظر میں تو باہیں پسارے  مری آنکھیں کب  سے تمہاری ہی دہلیز پر  تھیں   مرے کان کب سے تمہاری ہی دیوار سے تھے  لگے  کب  مجھے تم صدا دو مری اور دیکھو  کبھی خود کو دیکھا بھی ہے  آئینے میں کہ تم  کیا سے کیا ہوگئے  ان دنوں میں  مگر خود کو کیسے بھلا دیکھتے تم فصیلیں جو اونچی اٹھائی تھیں  تم نے کہیں کوئی روزن دیا ہی نہیں  اندھیرا اندھیرا بلا کا اندھیرا ہے مکڑی کا ڈیرا پھنسے کوئی اس میں  نکل ہی نہ پائے  مگر اس اندھیرے سے تم کو ضیا کھینچنی ہے  اٹھو! مکڑی جالے کو توڑو اندھیرے کو چیرو  میرے پاس آؤ شبنم فردوس मकड़ी जाल *जबीं* पर *शिकन* *रुख़* पे *रंजो अलम*  मातमी आंखें ले के यूं बैठे हो क्यों तुम ? उठो । मकड़ी जाले को तोड़ो  अंधेरे को चीरो मेरे पास आओ मैं अब भी वहीं हूं  जहां तुमने छोड़ा हमेशा से हूं मुंतज़िर मैं तो बाहें पसारे मेरी आंखें कब से तुम्हारी ही दहलीज़ पर थीं मेरे कान कब से तुम्हारी ही दीवार से थे लगे

Sheir _ Poet_ Ali Javed

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طمانچہ وقت نے ایسا لگا دیا  ہے مجھے  نہ جانے کب میں دوبارہ سے اٹھ  سکوں گا کبھی  علی جاوید तमाचा वक्त़ ने ऐसा लगा दिया है मुझे न जाने कब मैं दुबारा से उठ सकूंगा कभी अली जावेद