Ghazal _ zindagani javedani bhi nahi by Amjad Islam Amjad

زندگانی جاودانی بھی نہیں لیکن اس کا کوئی ثانی بھی نہیں ہے سوا نیزے پہ سورج کا علم تیرے غم کی سائبانی بھی نہیں منزلیں ہی منزلیں ہیں ہر طرف راستے کی اک نشانی بھی نہیں آئنے کی آنکھ میں اب کے برس کوئی عکس مہربانی بھی نہیں آنکھ بھی اپنی سراب آلود ہے اور اس دریا میں پانی بھی نہیں جز تحیر گرد باد زیست میں کوئی منظر غیر فانی بھی نہیں درد کو دل کش بنائیں کس طرح داستان غم کہانی بھی نہیں یوں لٹا ہے گلشن وہم و گماں کوئی خار بد گمانی بھی نہیں امجد اسلام امجد  ज़िंदगानी जावेदानी भी नहीं लेकिन इस का कोई सानी भी नहीं है सवा-नेज़े पे सूरज का अलम तेरे ग़म की साएबानी भी नहीं मंज़िलें ही मंज़िलें हैं हर तरफ़ रास्ते की इक निशानी भी नहीं आइने की आँख में अब के बरस कोई अक्स-ए-मेहरबानी भी नहीं आँख भी अपनी सराब-आलूद है और इस दरिया में पानी भी नहीं जुज़ तहय्युर गर्द-बाद-ए-ज़ीस्त में कोई मंज़र ग़ैर-फ़ानी भी नहीं अमजद इस्लाम अमजद  दर्द को दिलकश बनाएँ किस तरह दास्तान-ए-ग़म कहानी भी नहीं यूँ लुटा है गुलशन-ए-वहम-ओ-गुमाँ कोई ख़ार-ए-बद-गुमानी भी नहीं अमजद इस्लाम अमजद

corona Ek Banwas

کورونا ایک بنواس

بیٹے کی دوسری سالگرہ پر 
جب سے آنے کا سنا تھا 
سوچتی رہتی تھی اکثر 
جس کی خاطر  ہم نے جاناں
ایک مدت بنواس ہے کاٹی  
در در بھٹکے ، منت مانی
رب کی رحمت ہوئی  ہم پر 
چھو کے اس کو دیکھو گے جب  
کیسے تم ری ایکٹ کرو گے
 آنکھ میں ڈب ڈب ہوں گے آنسو 
نظر  چراؤ گے تم مجھ سے  
غلطی سے گر مل گئیں نظریں
میری انکھ میں
  شاید  کوئی
کنکڑ پڑ گیا ہے دیکھو 
کہہ کر بڑھ جاؤگے آگے
توتلے لہجے میں جب تم کو 
بابا کہہ کر بلائے گا
کیسے تم ری ایکٹ کروگے 
جامد ہی  ہو جاؤ گے 
یا سینے سے لپٹا لو گے   
جیون کا وہ سندر لمحہ 
دیکھنے کو بے تاب تھی کب سے 
لیکن اب جو وبا چلی ہے 
آنے کا امکان نہیں ہے
بیٹا مجھ سے 
پوچھ رہا ہے 
بابا کب آئیں گے ماما
کیسے میں اس کو سمجھاؤں 
ابھی بھی شاید باقی ہے 
کچھ مدت بنواس کی اور
شبنم فردوس
25/05/20

कोरोना एक बनवास

बेटे की दूसरी सालगिरह पर
जब से आने का सुन था
 सोचती रहती थी अक्सर
जिसकी खातिर हमने जाना
एक मुद्दत बनवास है काटी
दर दर भटके , मन्नत मानी
रब की रहमत हुई हम पर
छू के उसको देखोगे जब
कैसे तुम रिएक्ट करोगे 
आंख में डब डब होंगे आंसू
नज़र चुराओगे तुम मुझसे 
गलती से गर मिल गईं नज़रें
मेरी आंख में 
शायद कोई 
कंकड़ पड़ गया है देखो
कह कर बढ़ जाओगे आगे
तोतले लहजे में जब तुमको
बाबा कह कर बुलाएगा
कैसे तुम रिएक्ट करोगे 
जामिद ही होजाओगे 
या सीने से लिपटा लोगे
जीवन का वो सुन्दर लम्हा देखने को बेताब थी कब से
लेकिन अब जो वबा चली है
आने का इमकान नहीं है
बेटा मुझसे पूछ रहा है 
बाबा कब आयेंगे मामा
कैसे मै उसको समझाऊं
अभी भी शायद बाक़ी है 
कुछ मुद्दत बनवास की और
शबनम फ़िरदौस
२५/०५/२०

Comments

Rashid Malik said…
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Rashid Malik said…
بہت ہی عمدہ تلخ اور حساس موضوع کو نظم کیا ہے۔ وااااہ کیا کہنے ❤
Shabnam firdaus said…
بہت بہت شکریہ
دعائے سلامتی